रतन टाटा के सामने ममता बनर्जी को झुकना पड़ा और अब करोड़ों का मुआबजा देना होगा!
रतन टाटा की आखिरकार जीत हुयी! क्यों लेकिन? आपके सामने ये सवाल अब जरूर आ रहा होगा, चलिए जानते हैं। आपको तो याद ही होगा सिंगूर विवाद। इस विवाद के चलते जब पचिम बंगाल सरकार और टाटा के बीच एक बड़ा विवाद चला जो की ये विवाद बाद में कोर्ट तक पहुंचा।
दिग्गज उधोगपति रतन टाटा के सामने अब बंगाल सरकार को झुकना पड़ा अपने ड्रीम प्रोजेक्ट नैनो टाटा के लिये जिसमे अब उन्हें सरकार की तरफ से कई करोड़ों का हर्जाना उनको देना होगा जिसकी उम्मीद टाटा ने नहीं की होगी। रतन टाटा का सपना था कि हर आम आदमी के लिए चार पहिया वाहन हो। नैनो उनका ड्रीम प्रोजेक्ट रहा था। यह परियोजना पश्चिम बंगाल के सिंगुर में स्थापित की जानी थी। लेकिन तभी जमीन विवाद खड़ा वहां हो गया। यह विवाद ट्रिब्यूनल तक पहुंच गया था। इसमें टाटा ग्रुप को इसमें बड़ी जीत मिली। इसे पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। इसलिए अब पश्चिम बंगाल सरकार को टाटा मोटर्स को 766 करोड़ रुपये का मुआवजा देना होगा। आख़िर ये मामला क्या है? चलिये जानते हैं!
रतन टाटा का सिंगुर विवाद
सिंगुर विवाद मामला 2008 का है जहाँ 2008 में सिंगुर में टाटा ग्रुप और पश्चिम बंगाल सरकार के बीच विवाद हो गया था। असल में रतन टाटा का सपना था की वो हर आम आदमी को एक कार उपलब्ध कराएं और उसे बनाने के लिए सिंगुर स्थान को चुना जहाँ वो अपना कारखाना लगाते। अब क्योंकि प्रोजेक्ट बड़ा था तो टाटा ने सिंगुर के पास एक हज़ार एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया। लगभग 13 हज़ार किसानों की जमीन इस प्रोजेक्ट में अधिग्रहित की गयी। उस समय ममता बनर्जी विपक्ष की नेता थी तो उन्होंने इस प्रोजेक्ट का जोर शोर से विरोध किया। चुनाव के बाद ममता बनर्जी सत्ता में आ गयी और उन्होंने कानून बनाकर उन्होंने जमीन को उन किसानों में लौटाना शुरू कर दिया। इससे सीधा नुकसान टाटा ग्रुप को हुआ।
टाटा मोटर्स का पक्ष
जिस समय ये अधिग्रहण दिया गया था उस समय पश्चिम बंगाल में वामपंथी सत्ता में थे। और उन्होंने इस प्रोजेक्ट को क्लीन चिट दी थी और उसके बाद ही टाटा मोटर्स ने इस प्रोजेक्ट को शुरू किया। आगे चलकर जब इसका विरोध हुआ तो उस प्रोजेक्ट को स्थान्तरित करके पश्चिम बंगाल से सीधे गुजरात के साणंद में स्थापित करना पड़ा। गुजरात सरकार ने इसका भरपूर समर्थन किया।
क्योंकि ये सरकार की वजह से टाटा को इसका नुक़सान झेलना पड़ा अतः उन्होंने इसकी अपील पश्चिम बंगाल में आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल में की। उसके बाद 2011 में यह अपील WBIDC से की गई थी। जून 2012 में कलकत्ता उच्च न्यायालय ने ममता बनर्जी द्वारा लाये गए अधिनियम को अवैध घोषित कर दिया गया था। लेकिन फिर भी जमीन का कब्ज़ा वापिस उन्हें नहीं दिया गया। इसके बाद तीन सदस्यीय मध्यस्थ न्यायाधिकरण ने इस मामले पर अब फैसला सुनाया गया जिसमें पश्चिम बंगाल औद्योगिक विकास निगम को 11 फीसदी वार्षिक ब्याज के साथ 765.78 करोड़ रुपये का मुआवजा देना होगा।
इस तरह पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा लाये गए अधिनियम को नाजायज ठहराते हुए टाटा ग्रुप को हुये नुकसान की भरपाई करते हुये 11 फीसदी वार्षिक व्याज के साथ 765.78 करोड़ रूपये का मुआवजा देना होगा। जो कि टाटा मोटर्स की एक जीत के रूप में देखा जा रहा है।